Lekhika Ranchi

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रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद



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इस विचार से उसे बड़ी शांति मिली, जैसे किसी कवि को उलझी हुई समस्या की पूर्ति से होती है।
वह तड़के ही उठा और जाकर भैरों के दरवाजे पर आवाज दी। भैरों सोया हुआ था। सुभागी बैठी रो रही थी। भैरों ने उसके घर पहुँचते ही उसकी यथाविधि ताड़ना की थी। सुभागी ने सूरदास की आवाज पहचानी। चौंकी कि यह इतने तड़के कैसे आ गया! कहीं दोनों में लड़ाई न हो जाए। सूरदास कितना बलिष्ठ है, यह बात उससे छिपी न थी। डरी कि सूरदास ही रात की बातों का बदला लेने न आया हो। यों तो बड़ा सहनशील है, पर आदमी है, क्रोध आ गया होगा। झूठा इलजाम सुनकर क्रोध आता ही है। कहीं गुस्से में आकर इन्हें मार न बैठे। पकड़ पाएगा, तो प्रान ही लेकर छोड़ेगा। सुभागी भैरों की मार खाती थी, घर से निकाली जाती थी, लेकन यह मजाल न थी कि कोई बाहरी आदमी भैरों को कुछ कहकर निकल जाए। उसका मुँह नोच लेती। उसने भैरों को जगाया नहीं, द्वार खोलकर पूछा-क्या है सूरे, क्या कहते हो?
सूरदास के मन में बड़ी प्रबल उत्कंठा हुई कि इससे पूछूँ, रात तुझ पर क्या बीती; लेकिन जब्त कर गया-मुझे इससे वास्ता? उसकी स्त्री है। चाहे मारे, चाहे दुलारे। मैं कौन होता हूँ पूछनेवाला। बोला-भैरों क्या अभी सोते हैं? जरा जगा दे, उनसे कुछ बातें करनी हैं।
सुभागी-कौन बात है, मैं भी सुनूँ?
सूरदास-ऐसी ही एक बात है, जरा जगा तो दे।
सुभागी-इस बखत जाओ, फिर कभी आकर कह देना।
सूरदास-दूसरा कौन बखत आएगा। मैं सड़क पर जा बैठूँगा कि नहीं? देर न लगेगी।
सुभागी-और कभी तो इतने तड़के न आते थे, आज ऐसी कौन-सी बात है?
सूरदास ने चिढ़कर कहा-उसी से कहूँगा, तुझसे कहने की बात नहीं है।
सुभागी को पूरा विश्वास हो गया कि यह इस समय आपे में नहीं है। जरूर मारपीट करेगा। बोली-मुझे मारा-पीटा थोड़े ही था; बस वहीं जो कुछ कहा-सुना, वही कह-सुनकर रह गए।
सूरदास-चल, तेरे चिल्लाने की आवाज मैंने अपने कानों सुनी।
सुभागी-मारने को धमकाता था; बस, मैं जोर से चिल्लाने लगी।
सूरदास-न मारा होगा। मारता भी, तो मुझे क्या, तू उसकी घरवाली है; जो चाहे करे, तू जाकर उसे भेज दे। मुझे एक बात कहनी है।
जब अब भी सुभागी न गई तो सूरदास ने भैरों का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारना शुरू किया। कई हाँकों के बाद भैरों की आवाज सुनाई दी-कौन है, बैठो, आता हूँ।
सुभागी यह सुनते ही भीतर गई और बोली-जाते हो, तो एक डंडा लेते जाओ, सूरदास है, कहीं लड़ने न आया हो।
भैरों-चल बैठ, लड़ाई करने आया है! मुझसे तिरिया-चरित्तार मत खेल।
सुभागी-मुझे उसकी त्योरियाँ बदली हुई मालूम होती हैं, इसी से कहती हूँ।
भैरों-यह क्यों नहीं कहती कि तू उसे चढ़ाकर लाई है। वह तो इतना कीना नहीं रखता। उसके मन में कभी मैल नहीं रहता।
यह कहकर भैरों ने अपनी लाठी उठाई और बाहर आया। अंधा शेर भी हो, तो उसका क्या भय? एक बच्चा भी उसे मार गिराएगा।
सूरदास ने भैरों से कहा-यहाँ और कोई तो नहीं है? मुझे तुमसे एक भेद की बात करनी है।
भैरों-कोई नहीं है। कहो, क्या बात कहते हो?
सूरदास-तुम्हारे चोर का पता मिल गया।
भैरों-सच, जवानी कसम?
सूरदास-हाँ, सच कहता हूँ। वह मेरे पास आकर तुम्हारे रुपये रख गया। और तो कोई चीज नहीं गई थी?
भैरों-मुझे जलाने आए हो, अभी मन नहीं भरा?
सूरदास-नहीं, भगवान् से कहता हूँ, तुम्हारी थैली मेरे घर में ज्यों-की-त्यों पड़ी मिली।
भैरों-बड़ा पागल था, फिर चोरी काहे को की थी?
सूरदास-हाँ, पागल ही था और क्या।
भैरों-कहाँ है, जरा देखूँ तो?
सूरदास ने थैली कमर से निकालकर भैरों को दिखाई। भैरों ने लपककर थैली ले ली। ज्यों-की-त्यों बंद थी।
सूरदास-गिन लो, पूरे हैं कि नहीं?
भैरों-हैं, पूरे हैं, सच बताओ, किसने चुराया था?
भैरों को रुपये मिलने की इतनी खुशी न थी, जितनी चोर का नाम जानने की उत्सुकता। वह देखना चाहता था कि मैंने जिस पर शक किया था, वही है कि कोई और।
सूरदास-नाम जानकर क्या करोगे? तुम्हें अपने माल से मतलब है कि चोर के नाम से?
भैरों-नहीं, तुम्हें कसम है, बता दो, है इसी मुहल्ले का न?
सूरदास-हाँ, है तो मुहल्ले ही का; पर नाम न बताऊँगा।
भैरों-जवानी की कसम खाता हूँ, उससे कुछ न कहूँगा।
सूरदास-मैं उसको वचन दे चुका हूँ कि नाम न बताऊँगा। नाम बता दूँ, और तुम अभी दंगा करने लगो, तब?
भैरों-विसवास मानो, मैं किसी से न बोलूँगा। जो कसम कहो, खा जाऊँ। अगर जबान खोलूँ, तो समझ लेना, इसके असल में फरक है। बात और बाप एक है। अब और कौन कसम लेना चाहते हो?
सूरदास-अगर फिर गए, तो यहीं तुम्हारे द्वार पर सिर पटककर जान दे दूँगा।
भैरों-अपनी जान क्यों दे दोगे, मेरी जान ले लेना; चूँ न करूँगा।

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